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जाने, कालसर्प योग क्या है?
कालसर्प योग, मूलतः संस्कृति के दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ भिन्न भिन्न कर्मकांडी विद्वानों ने निकाला है, ये दो शब्द है 'काल' एवं 'सर्प', काल के भी दो अर्थ है, प्रथम मृत्यु और दूसरा है समय, इसी प्रकार से सर्प शब्द के भी दो अर्थ है, प्रथम है सर्प अर्थात नाग और दूसरा है रेंगना, अब हम अगर दोनों शब्दों को संयुक्त करते है तो चार अर्थ निकलते है प्रथम सर्प द्वारा मृत्यु, दूसरा समय पर नाग का प्रकोप, तीसरा बहुत ही दुर्दशा के साथ जीवन जीना, यही समय का रेंगना, और चौथा है मृत्यु का धीरे धीरे व्यक्ति को अपने निकट बुलाना किन्तु बहुत कष्टों के साथ, इस प्रकार किसी भी अर्थ में यह उस व्यक्ति के लिए शुभ नहीं है जिसकी कुंडली में कालसर्प योग बना हुआ है।
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क्या है मांगलिक दोष या मंगल दोष ?
सर्वप्रथम ये जानना जरुरी है की मंगल जैसे शब्द से कुंडली में होने पर भय क्यों ?, ये मंगल दोष कुशल मंगल वाले मंगल से अलग है, शास्त्रों, पुराणों और वेदो में भी मंगल गृह को युद्ध और शौर्य का देवता माना गया है, ये ग्रह अपने आप में पूर्ण सक्षम ही माना जाता है, निर्भयता और क्रोधी होना मांगलिक व्यक्ति की विशेष निशानी है, और कौन व्यक्ति मांगलिक है इसका निर्धारण उसकी कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अस्टम और द्वादस घर में होने पर उस व्यक्ति को मांगलिक माना जाता और इसका स्वभाव उग्र होने के कारण कई बार विवाह में विलम्ब होना, या होने के पश्चात रिश्तो में कड़वाहट का होने इत्यदि सामान्य लक्षण है, और इसी प्रकार की समस्याओ के कारन इसको मंगल दोष कहा जाता है और उज्जैन का प्रसिद्द मंगल नाथ का मंदिर मंगल दोष निवारण पूजा के लिए विश्व प्रसिद्द स्थल है।
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महामृत्युंजय मंत्र जाप विधान
वैसे तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप मनुष्य स्वयं भी कर सकता है, जैसे स्नान के समय जब आप जल सर पर डाल रहे हो तब जाप करने से शरीर निरोग रहता है, किसी भी भोज्य या पेय पदार्थ का सेवन करने से पहले इस मंत्र के जाप से उस भोजन का बहुत ही सकारत्मक प्रभाव पड़ता और वह भोजन स्वस्थ प्रद होता है, यही दैनिक जीवन का आधार है, किन्तु किसी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए आपको महामृत्युंजय मंत्र का जाप किसी विशुद्ध सदाचारी एवं शाकाहारी ब्राह्मण से ही करवाना चाहिए, कुछ विशेष समय के लिए मंत्र जाप की संख्या भी होती है जैसे :
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पंडित ओमप्रकाश व्यास
अवंतिका नगरी जिसे भगवान महाकाल की नगरी उज्जयिनी के नाम से वर्तमान में जाना जाता है, प्राचीन काल से ही न्याय के लिए प्रसिद्द है क्युकी यहाँ पर परम शिवभक्त विक्रमादित्य राज्य करते थे, आज भी मनुष्य के पापों का लेखा जोखा यही पर सम्पादित होता है, मनुस्य के द्वारा जाने अनजाने में हुए बहुत से पाप कर्मो के कारन उसे अपने जीवन में कष्ट उठाने पड़ते है, जिसके बारे में उसे पता भी नहीं होता है, ऐसी परिस्थिति में भगवान महाकाल के द्वार ही एक मात्र शरण स्थली होती है, यहाँ से कोई भी भक्त खली हाथ नहीं जाता है, जो आया है अपने समस्त जाने अनजाने किये पापों से मुक्त होकर भय हीन भाग्यवान होकर ही बापस गया है, यहाँ पर बिभिन्न प्रकार की पूजा को अपनी सुविधा एवं समस्या निवारण के लिए करवाया जाता है।
पंडित ओम गुरु जी, उज्जयनी के प्रसिद्द एवं वैदिक विधि विधान से पूजा पाठ करवाने में प्रकांड विद्वान है, पंडित जी ने १९९१ में वाराणसी विश्वविद्यालय से वेद विशारद की शिक्षा ग्रहण की है, इसके बाद बहुत विश्विद्यालय में वेद एवं विज्ञानं जैसे विषय पर प्रख्यान दिए है, पंडित जी का वेदोक्त ज्ञान एवं महाकाल की कृपा यहाँ आने वाले यजमानो के समस्त कष्टों एवं समस्या का निवारण कर देती है, पंडित जी पिछले 25 वर्षों से अनेकानेक पुजाऐ आयोजित करते आ रहे है और यह वास्तव में उनके यजमानो के लिए सुखदायी एवं मनोवांक्षित फलदायी रहा है।
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